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Solar panels and coal plants in Dadri, India

सतत विकास की दिशा में भारत के अवसर

Blog Sustainable Growth and Energy

भारत के लिए पर्यावरणीय क्षति को न्यूनतम रखते हुए जीवन-स्तर बढ़ाने को प्राथमिकता देने वाले विकास पथ को चुनना अति महत्वपूर्ण है।

महाभारत में उल्लेख है कि अग्नि देवता बहुत अधिक घी खाने से अपच से पीड़ित होकर, खाण्डव वन को पूरी तरह से भस्म कर देते हैं। कृष्ण और अर्जुन की मदद से, अग्नि ने ऋतुओं और युद्ध के देवता इन्द्र पर विजय प्राप्त की और सभी प्राणियों को ध्वस्त कर दिया। इस राख से पांडवों के राज्य की शानदार राजधानी इन्द्रप्रस्थ का उदय हुआ। मानव सभ्यता फली-फूली जबकि प्रगति के नाम पर प्रकृति नष्ट हुई। क्या यह वास्तव में कृत योग्य कार्य था? खाण्डव वन के जलने की कहानी से उपजे प्रश्न का कोई उत्तर नहीं है। मानवीय लाभ के लिए जंगल को नष्ट करने की नैतिक दुविधा के बारे में विचार करने का दायित्व पाठकों पर छोड़ दिया गया।

एक समय में आर्थिक बदहाली की दास्तान कहे जाने वाले भारत के विकास इंजन ने गति पकड़ ली है। पिछले दो दशकों में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) लगभग चार गुना हो गया है। विकास  की तेज़ी ने पूरे उपमहाद्वीप में अनगिनत ज़िन्दगियों को बदल दिया है। वर्ष 2000 में कृषि में 60% भारतीय कार्यबल कार्यरत था, लेकिन आज शहरों में सेवा क्षेत्र में नई नौकरियों के साथ, इसकी हिस्सेदारी गिरकर 40% हो गई है।

अन्य अग्रणी देशों की ही तरह, भारत की आर्थिक उन्नति पर्यावरणीय नुकसान के बिना नहीं हुई। मानव समृद्धि का लम्बे समय से पर्यावरण के साथ प्रतिकूल सम्बन्ध रहा है। भारत अब दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जबकि वर्ष 2023 में इसकी राजधानी, दिल्ली, सबसे प्रदूषित महानगर था। वर्ष 2023 में विश्व के शीर्ष 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से नौ, भारतीय नगर थे।

भारत में सतत विकास की आवश्यकता और सम्भावना

प्रगति भारत की अनिवार्यता बनी हुई है। कोई भी सरकार विकास विरोधी एजेंडे को बढ़ावा नहीं देगी और उसे देना भी नहीं चाहिए। हालांकि स्थानीय और वैश्विक स्तर पर विकास से जुड़े बाहरी प्रभाव जलवायु परिवर्तन के रूप में गर्म तापमान, ख़त्म होते भूजल, ज़हरीली हवा, अधिक बाढ़ और अधिक गम्भीर सूखे के रूप में प्रकट हो रहे हैं। अनियंत्रित छोड़ दिए जाने पर, ये बाहरी चीज़ें विकास की सम्भावनाओं को ख़तरे में डाल देती हैं। इसलिए, भारत को सतत विकास को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है- एक ऐसा प्रक्षेप-पथ जो पर्यावरणीय गिरावट को कम करते हुए जीवन-स्तर आगे बढ़ाने को प्राथमिकता देता हो। भौगोलिक विस्तार को देखते हुए भारत कैसे विकास को चुनता है, इसका असर न केवल उसके स्थानीय पर्यावरण पर पड़ेगा, बल्कि दुनिया भर के पर्यावरण पर भी पड़ेगा।

सौभाग्य से तकनीकी और संस्थागत, दोनों प्रकार के हालिया अकस्मात नवाचारों के कारण इस 'विकास बनाम पर्यावरण' ट्रेड-ऑफ़ की ताकत पहले से कहीं ज़्यादा कमज़ोर हुई है। सतत विकास की चुनौती के बजाय, यह सतत विकास का अवसर बन सकता है- खाण्डव वन में स्थित इन्द्रप्रस्थ के निर्माण का, न कि खाण्डव के स्थान पर इन्द्रप्रस्थ के बनने का। इस लेख में हम इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे कम से कम दो क्षेत्रों, ऊर्जा और संरक्षण में नवाचार भारत को विकास के पथ पर आगे बढ़ने में मदद कर रहे हैं। कई पहलुओं में भारत पहले से ही अग्रणी है।

स्वच्छ ऊर्जा का दोहन

ऊर्जा सभी आर्थिक गतिविधियों का आधार है। भारत अपनी ऊर्जा कहाँ से और किस कीमत पर प्राप्त करता है, यह तय करेगा कि वह अपनी वृद्धि को कायम रख सकता है या नहीं।

Figure 1 - Share of India’s energy sources in 2022

आकृति-1. वर्ष 2022 में भारत के प्राथमिक ऊर्जा स्रोतों का हिस्सा
स्रोत : भारत का जलवायु और ऊर्जा डैशबोर्ड, नीति आयोग (2024)

सौर ऊर्जा में वृद्धि के बावजूद, जीवाश्म ईंधन भारत में प्राथमिक ऊर्जा आपूर्ति पर हावी रहा है (आकृति-1)। वर्ष 2022 में भारत की 59% ऊर्जा कोयले से, 30% तेल से और मात्र 2% नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त हुई। जीवाश्म ईंधन के इस हिस्से को कम करने के लिए दो बदलावों की आवश्यकता है- विद्युत क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा की तैनाती और परिवहन का विद्युतीकरण। राजनीतिक, आर्थिक, कानूनी और ऊर्जा सुरक्षा चिन्ताओं का मिलाजुला परिणाम है कि जीवाश्म ईंधन और विशेष रूप से कोयला, आज भी भारतीय ऊर्जा क्षेत्र का 'राजा' बना हुआ है (ग्रॉस 2019)।

एक नए साम्राज्य का उदय होने वाला है। नवाचार की बयार का मतलब अब यह है कि सौर और पवन अब तक के ज्ञात बिजली के सबसे सस्ते स्रोत हैं (इवांस 2020)। वर्ष 2009 और 2019 के बीच सौर ऊर्जा से तैयार होने वाली बिजली की लागत में 89% की गिरावट आई है। वर्ष 1991 में, लिथियम-आयन बैटरी सेल की कीमत प्रति किलोवाट घंटा (kWh) 7,523 अमेरिकी डॉलर थी, आज यह 139 अमेरिकी डॉलर है। यानी इसकी लागत में 98% की गिरावट आई है। नवीकरणीय ऊर्जा की लागत में नाटकीय गिरावट से बिजली प्रणाली पर उनकी रुक-रुक कर होने वाली आपूर्ति की अतिरिक्त लागत की भरपाई हो जाती है (वे एवं अन्य 2022)।

इसके अलावा, बैटरी भंडारण प्रणालियों में प्रगति और मांग-पक्ष प्रबंधन में सुधार इन परिवर्तनीय स्रोतों के सिस्टम-स्थिरता पर पड़ने वाले प्रभाव को कम कर रहे हैं। भारत में नवीकरणीय ऊर्जा और भंडारण की लागत समता, हमारी सोच से भी जल्दी, स्थानीय कोयले के बराबर होने की सम्भावना है, जो ऊर्जा विकास के लिए सस्ती, सुरक्षित और गैर-प्रदूषणकारी बिजली के अपार अवसर प्रदान करती है। यदि हम जीवाश्म ईंधन के दहन से होने वाले वायु प्रदूषण की सामाजिक और आर्थिक लागत को ध्यान में रखें, तो उसके लागत की वास्तविक स्थिति और भी स्पष्ट होकर उभरती है।

भारत का इस सब पर ध्यान नहीं है, ऐसा नहीं है। भारत में सौर ऊर्जा की स्थापना लागत में 2010-2022 (कुंडल 2023) में भारी गिरावट आई है। राजस्थान का भड़ला सोलर पार्क दुनिया के सबसे बड़े सोलर पार्कों में से एक है। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के मुख्यालय के मेज़बान देश के रूप में भारत न केवल दक्षिण एशिया में, बल्कि अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भी अग्रणी बनकर उभरा है (आकृति-2)। देश भर के आवासीय मकानों की छतों पर 637 गीगावाट की सौर क्षमता की सम्भावना है, जिसका सिर्फ एक-तिहाई हिस्सा भारत वासियों की वर्तमान बिजली ज़रूरतों को पूरा कर सकता है (ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद, 2023)। सरकार ने आने वाले वर्षों में 500 गीगावॉट सौर ऊर्जा उत्पादन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इस क्षेत्र में महत्वाकांक्षा को कायम रखना सर्वोपरि है।

Figure 2: Share of electricity production from solar Duration Data visualisation

आकृति-2. उच्च आय और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन का हिस्सा
स्रोत : 'डेटा में हमारी दुनियाका उपयोग करके लेखकों द्वारा तैयार किया गया ग्राफ़। 

परिवहन ऊर्जा सिक्के का दूसरा पहलू है। भारत इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के मामले में अग्रणी है। वर्ष 2023 में ईवी की बिक्री दोगुनी हुई, इस साल 66% बढ़ने की उम्मीद है और वर्ष 2030 तक भारत में एक तिहाई वाहन इलेक्ट्रिक होने का अनुमान है। इसमें बड़े पैमाने पर दोपहिया और तिपहिया वाहन शामिल हैं जो अंतिम मील की गतिशीलता सम्बन्धी मुद्दों (अन्य विकासशील देशों में भी आम) का समाधान करते हैं और इसलिए, भारतीय शहरों में सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों के पूरक हैं। बिजली से चलने वाले दोपहिया और तिपहिया वाहनों का प्रसार बहुत आसान है। जैसे-जैसे भारत की तरक्की होगी, बड़े, चार-पहिया वाहनों की मांग अनिवार्य रूप से बढ़ेगी। नवप्रवर्तन से ईवी की लागतों में कमी आई है और बैटरी की रेंज बढ़ी है, लेकिन उपभोक्ता अभी भी इनके ऊँचे दामों और एक बार चार्ज के बाद दूरी तय करने की रेंज की कमी को लेकर चिंतित हैं। सरकार इस परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने हेतु, सम्बंधित चार्जिंग बुनियादी ढाँचे के विकास पर ध्यान केन्द्रित कर सकती है जिससे इन बाधाओं को दूर किया जा सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि विद्युतीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति के प्रति प्रतिक्रिया के बजाय यह इस तरह के बुनियादी ढाँचे के निर्माण करने का सही अवसर है।

प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण

हमारे ऊर्जा उपयोग का सीधा दुषपरिणाम हमारे प्राकृतिक पर्यावरण पर पड़ता है। जिस हवा में हम साँस लेते हैं, जो पानी हम पीते हैं, जिस मिट्टी को हम जोतते हैं, हर एक पहलू में भारत का प्राकृतिक पर्यावरण हमला झेल रहा है। हवा अब खतरनाक स्तर से अधिक प्रदूषित हो चुकी है। वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली में जीवन 11.9 वर्ष कम हो रहा है। भारत की 70% कृषि का निर्वाह करने वाला भूजल, तेज़ी से अत्यधिक कमी की ओर बढ़ रहा है- एक ऐसा निर्णायक मोड़ जिससे उबरना असम्भव होगा, हम तीव्र गति से उस तक पहुँच रहे हैं। यहाँ तक कि वार्षिक मानसून के आगमन का समय जैसी बड़ी जलवायु सम्बन्धी अनियमितताएं भी तेज़ी से बढ़ रही हैं। तीव्र जलप्रलय ने बाढ़ के खतरे को बढ़ा दिया है क्योंकि पर्याप्त वृक्ष आवरण के अभाव में मिट्टी की ऊपरी परत नष्ट हो जाती है, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो जाती है। बाढ़ की चरम घटनाओं से मकान, भवन और इमारतें भी नष्ट हो जाती हैं। 

प्राकृतिक पूंजी का क्षरण मानव जीवन को तुरंत (जैसे कि बाढ़ के कारण विस्थापन या खराब वायु गुणवत्ता के कारण स्कूल बन्द होना) और समय के साथ (प्रदूषकों के लम्बे समय तक सम्पर्क में रहने से स्वास्थ्य सम्बन्धी जटिलताओं के कारण) प्रभावित करता है (शर्मा 2022)। जिन माताओं को गर्भावस्था के दौरान बारिश के झटके का सामना करना पड़ा, उनके बच्चे मौखिक और गणितीय क्षमता में असफलताओं के साथ बड़े हुए (चांग एवं अन्य 2022)। हमें नाज़ुक सम्बन्धों में आपस में बांधने वाले पारिस्थितिक तंत्र पर प्रकाश डालते हुए, दर्द निवारक औषधि डाइक्लोफिनेक की कई किस्मों के प्रसार के बाद भारत की गिद्धों की आबादी के पतन के साथ, जल जनित बीमारियों और मानव मृत्यु दर (फ्रैंक और सुदर्शन 2023) में काफी वृद्धि हुई है। ऐसे सभी सूक्ष्म कारक दीर्घकालिक विकास को प्रभावित करते हैं।

फिर भी नियमों और बाज़ारों के डिज़ाइन में हाल के नवाचार, प्रकृति के साथ हमारे सम्बन्धों में संतुलन बहाल करने में मदद कर रहे हैं। भारत में पराली जलाने से उत्पन्न होने वाले व्यापक बाह्य प्रभाव तात्कालिक पर्यावरण से परे भी महसूस किए जाते हैं। पंजाब में किसानों को अग्रिम सशर्त नकदी प्रदान करने वाली ‘पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए नवीन भुगतान (पीईएस) योजनाए’, पराली जलाने में कमी लाने में आश्वस्त लग रही हैं (जैक एवं अन्य 2023)। गुजरात में औद्योगिक कण पदार्थ उत्सर्जन के लिए एक बाज़ार की शुरूआत ने उत्सर्जन को 20-30% के बीच कम कर दिया, जबकि शमन लागत में 11-14% की कमी आई है (ग्रीनस्टोन एवं अन्य 2023)।

डेटा इन हस्तक्षेपों का आधार है- प्राकृतिक संपत्तियों को संरक्षित करने के लिए हमें पहले उन्हें बेहतर ढंग से मापने और समझने की आवश्यकता है। उपग्रह इमेजरी जैसी तकनीकी प्रगति ने हमें इस बात का विस्तृत ज्ञान दिया है कि आर्थिक विस्तार से प्रकृति किस प्रकार प्रभावित हो रही है। पर्यावरण में गिरावट के कारणों को जानकर, हम बेहतर इलाज बता सकते हैं।

नए एवं अज्ञात क्षेत्रों की पहचान

सतत विकास सम्भव है लेकिन इसकी गारंटी नहीं है। निहित पार्टियां अक्सर नए नवाचारों को अपनाने में देरी करने में सफल होती हैं। भारत के सामने विविध चुनौतियाँ हैं। भारत अत्यंत प्रतिभाशाली और दूसरी ओर अशिक्षितों का देश है, जीविका के लिए झूझते किसानों और एयरोस्पेस इंजीनियरों का देश है, रेगिस्तानों और झीलों का देश है। ये बातें नीति निर्माण और उसमें होने वाले निवेश को बाधित करती हैं। लेकिन, विकास पथ पर अग्रसर इस देश के उत्थान के लिए वर्तमान तकनीकी और संस्थागत नवाचार विकास की एक ऐसी स्वच्छ, टिकाऊ राह प्रशस्त करते हैं जिस पर इससे पहले कोई देश नहीं चला है।

मूल रूप में यह लेख लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस में ‘भारत सतत विकास सम्मेलन’ के एक भाग के रूप में आईजीसी ब्लॉग के सहयोग से प्रकाशित किया गया था। 

नए एवं अज्ञात क्षेत्रों की पहचान
सतत विकास सम्भव है लेकिन इसकी गारंटी नहीं है। निहित पार्टियां अक्सर नए नवाचारों को अपनाने में देरी करने में सफल होती हैं। भारत के सामने विविध चुनौतियाँ हैं। भारत अत्यंत प्रतिभाशाली और दूसरी ओर अशिक्षितों का देश है, जीविका के लिए झूझते किसानों और एयरोस्पेस इंजीनियरों का देश है, रेगिस्तानों और झीलों का देश है। ये बातें नीति निर्माण और उसमें होने वाले निवेश को बाधित करती हैं। लेकिन, विकास पथ पर अग्रसर इस देश के उत्थान के लिए वर्तमान तकनीकी और संस्थागत नवाचार विकास की एक ऐसी स्वच्छ, टिकाऊ राह प्रशस्त करते हैं जिस पर इससे पहले कोई देश नहीं चला है।

मूल रूप में यह लेख लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस में ‘भारत सतत विकास सम्मेलन’ के एक भाग के रूप में आईजीसी ब्लॉग के सहयोग से प्रकाशित किया गया था। 

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

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Mid-day school meal

मातृत्व पर पोषण का बोझ : क्या बच्चों को दिया जाने वाला मध्याह्न भोजन उनकी माताओं के स्वास्थ्य परिणामों में भी सुधार ला सकता है?

Blog Women's Economic Empowerment and Inclusive Growth

मध्याह्न भोजन बच्चों को पोषण सुरक्षा जाल प्रदान करता है और उनके अधिगम परिणामों तथा स्कूलों में उनकी उपस्थिति में सुधार लाता है। निकिता शर्मा तर्क देती हैं कि मध्याह्न भोजन प्राप्त करने वाले बच्चों की माताओं को भी इसके ‘स्पिलओवर’ लाभ मिल सकते हैं। वह शोध के निष्कर्षों पर प्रकाश डालती हैं जो यह दर्शाते हैं कि मध्याह्न भोजन बच्चों में कुपोषण को दूर करने के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करता है कि पोषण में कमी के दौरान बच्चों को खिलाने के लिए माताओं को अपना आहार त्यागने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

माँ और उसके बच्चे के स्वास्थ्य का आपस में गहरा संबंध होता है। बच्चे अपनी पोषण संबंधी जरूरतों के लिए अपनी माताओं पर सबसे अधिक निर्भर होते हैं। नवजात शिशुओं के रूप में और देखभाल किए जाने वाले बच्चों, दोनो के रूप में। भारत में, माँ के कद या लम्बाई और उसकी शैक्षिक उपलब्धि का उसके बच्चों के वृद्धिरोध या स्टंटिंग स्तर के साथ मजबूत आपसी संबंध है (किम एवं अन्य 2017)। फिर भी, भारतीय परिवारों के पारिवारिक रहन-सहन में सामाजिक-सांस्कृतिक अपेक्षाएं, संस्कार, या मानदंड परिवार के आर्थिक झटके के प्रभाव को कम करने के लिए माताओं को अपने आहार को छोड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। यह स्थिति कोविड-19 महामारी और उससे उपजी खाद्य असुरक्षा के दौरान बहुत अधिक बढ़ गई थी (कपूर 2022)।

सबसे हालिया राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2019-2021) से पता चलता है कि 15 से 49 वर्ष आयु की महिलाओं में रक्ताल्पता यानी एनीमिया की घटनाएं पिछले सर्वेक्षण (2015-16) के 53.1% की तुलना में बढ़कर 57% हो गई हैं। जैसा कि अपेक्षित था, इसके चलते पांच साल तक के बच्चों में एनीमिया के प्रसार में वृद्धि हो गई है जो 58.6% से बढ़कर 67.1% हो गया है। इसी सर्वेक्षण के अनुसार, पांच वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे अविकसित या स्टंटेड हैं, 19.3% कमज़ोर या वेस्टेड हैं और 32.1% बच्चे कम वज़न के हैं1। मई 2022 में, यूनिसेफ ने इस तथ्य से सचेत किया था कि भारत में विश्व में सबसे अधिक कुपोषित बच्चे हैं और देश में पांच वर्ष से कम आयु के 5,772,472 बच्चे गंभीर रूप से कमज़ोर हैं।

वर्ष 1995 में, कुछ चुनिंदा राज्यों में लागू करने के बाद, भारत में मध्याह्न भोजन योजना (अब प्रधानमंत्री-पोषण योजना के नए नाम से लागू) आधिकारिक तौर पर शुरू की गई थी। वर्ष 2001 तक, सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश ने सरकारी और सरकारी सहायता-प्राप्त स्कूलों के लिए यह अनिवार्य कर दिया था कि वे सभी बच्चों को कम से कम 450 कैलोरी (kcal) और 12 ग्राम प्रोटीन-युक्त पका हुआ भोजन मुफ्त में प्रदान करें। अनुमानित 11 करोड़ 80 लाख बच्चे इस कार्यक्रम के दायरे में आते हैं, जो दुनिया में सबसे बड़ा स्कूल पोषणाहार कार्यक्रम है। यह नीति मुख्य रूप से बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लिए तैयार की गई थी पर दशकों से किए गए शोध ने इसके कई ‘स्पिलओवर’ लाभों का पता लगाया है।

बच्चों के कुपोषण के एक नीतिगत समाधान के रूप में स्कूल का भोजन

किए गए शोध ने दर्शाया है कि कार्यक्रम प्रतिभागियों के दैनिक पोषणाहार में 49% की वृद्धि और बच्चों में प्रोटीन, कैलोरी और आयरन की कमी (अफरीदी 2010) में गिरावट आई है। मध्याह्न भोजन तैयार करने में ‘डबल-फोर्टिफाइड’ नमक का उपयोग करने से बच्चों में होने वाले एनीमिया में कमी आई (क्रामर एवं अन्य 2018)। बच्चों के प्रारंभिक वर्षों  के कुपोषण के संदर्भ में भरपाई या ‘कैच-अप’ वृद्धि और क्षतिपूर्ति (सिंह एवं अन्य 2014) और विशेष रूप से लड़कियों की स्कूल उपस्थिति में वृद्धि और समय के साथ उनके गणित और पठन अधिगम के परिणामों में सुधार के प्रमाण मिलते हैं (अफरीदी 2009, चक्रवर्ती और जयरामन 2019)। नीतिगत दृष्टिकोण से, मध्याह्न भोजन न केवल बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा की सुरक्षा करके उन्हें सुरक्षा कवच प्रदान करता है, बल्कि वंचित पृष्ठभूमि की महिलाओं को रोजगार भी प्रदान करता है और सामुदायिक खान-पान के माध्यम से सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा देता है (सिंह एवं अन्य 2014)। ये लाभ न केवल वयस्क होने पर बच्चों के जीवन में, बल्कि व्यापक समुदाय में भी स्थायी परिवर्तन लाने में सहायक हो सकते हैं।

लाभों का विस्तार और माताओं को अपरोक्ष लाभ मिलना

हाल ही के एक अध्ययन ने मध्याह्न भोजन योजना के अंतर-पीढ़ीगत लाभों को दर्शाया है- जिन माताओं को मध्याह्न भोजन योजना के पोषण संबंधी सहायता का लाभ मिला, उन्होंने उम्र के हिसाब से अधिक ऊंचाई के ज़ेड-स्कोर2 वाले बच्चों को जन्म दिया (चक्रबर्ती और अन्य 2021)। उन्होंने पाया कि जिन राज्यों में वर्ष 2005 में मध्याह्न भोजन योजना का अधिक कवरेज था, उन राज्यों में वर्ष 2016 में अविकसित या स्टंटेड बच्चे (पांच वर्ष की आयु तक के) कम थे। निचली सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले परिवारों की ऐसी माताओं को सबसे अधिक ‘कैरीओवर’ लाभ मिलता देखा गया जिन्हें उनके बचपन में मध्यान्ह भोजन योजना का लाभ मिला था । इसके अतिरिक्त, शोधकर्ता मानते हैं कि वर्ष 2006 और 2016 के बीच भारत में औसत आयु के अनुरूप ऊंचाई, ज़ेड-स्कोर में 13-32% का लाभ मध्याह्न भोजन योजना के कारण मिला।

मध्याह्न भोजन के एक और लाभ का पता इसकी अनुपस्थिति से चलता है। जहाँ परिवारों में भोजन की कमी और वित्तीय बाधाओं की परिस्थितियां हैं और माताओं के पास अपने बच्चों (और अन्य आश्रित सदस्यों) की प्राथमिक देखभाल करने वालों के रूप में बहुत कम विकल्प होते हैं, वहां माताओं को पोषण में कमी को सहना पड़ता है। और कमी के समय में माताएँ अपने स्वास्थ्य की स्थिति या पोषण की परवाह किए बिना, सबसे पहले आहार छोड़ती हैं। इसलिए, बच्चों को भोजन उपलब्ध करवाकर, राज्य यह सुनिश्चित कर सकता है कि माताओं के लिए घर में अधिक भोजन बचा रहे। हालाँकि भारत के मध्याह्न भोजन के बारे में ऐसी जांच का कोई ज्ञात अध्ययन नहीं है, ऐसा अध्ययन महिलाओं, शिशुओं और बच्चों के लिए अमेरिकी विशेष पूरक पोषण कार्यक्रम (डब्ल्यूआईसी) के संदर्भ में किया गया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि बच्चे जब डब्ल्यूआईसी के लाभों के पात्र नहीं रह जाते हैं, तो उनके पोषणाहार में कोई परिवर्तन नहीं होता, बल्कि इस कमी की भरपाई उनकी माताओं द्वारा किया जाता है जो परिणामतः कम भोजन खाती हैं (बिटलर एवं अन्य 2022)। शोधकर्ताओं ने समरूपता के लिए अपने परिणाम की तुलना एक अन्य कार्यक्रम के मूल्यांकन के साथ की, जिसके तहत संयुक्त राज्य अमेरिका में बच्चों वाले पात्र परिवारों को किराने का सामान खरीदने के लिए 60 डॉलर का वाउचर दिया जाता था। उम्मीद के मुताबिक, इस प्रकार के वाउचर से वयस्क खाद्य असुरक्षा में 18.5% की कमी आई (बिटलर एवं अन्य 2022)। इस प्रकार से, इस तरह के खाद्य सहायता कार्यक्रमों के स्पिलओवर लाभ और दूसरे फायदे परिवार के अन्य सदस्यों को भी मिलते हैं और ये माताओं को पोषण संबंधी कमी से बचा सकते हैं।

मध्याह्न भोजन दिए जाने के पारिवारिक निहितार्थ

सरकारी स्कूलों में बच्चों का नामांकन बढ़ रहा है, फिर भी मध्याह्न भोजन के लिए आवश्यक बजट आवंटन में इसके अनुरूप वृद्धि नहीं की गई है। कई स्पिलओवर लाभों और स्कूलों में मध्याह्न भोजन के प्रावधान की आवश्यकता के बारे में भरपूर शोध प्रमाण उपलब्ध होने के बावजूद, सरकार ने मध्याह्न भोजन हेतु बजट को वित्तीय वर्ष 2022-23 के 128 अरब से कम करते हुए वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 116 अरब रुपये कर दिया। बढ़ती कीमतें इस आवंटन को और अपर्याप्त बना देंगी। इसके कारण निश्चित रूप से मध्याह्न भोजन प्रदान करने वाले स्कूलों द्वारा भोजन की मात्रा और गुणवत्ता में समझौता किए जाने की संभावना है और वह भी एक ऐसे समय में, जब देश किसी भी बच्चे को भूखा नहीं रख सकता और न ही उसे खराब या अपर्याप्त भोजन दिया जा सकता है।

जैसे-जैसे स्कूल इन चुनौतियों का सामना करेंगे, इसके परिणाम बच्चों के घरों में प्रतिध्वनित होंगे। माता-पिता जो अभी भी महामारी की चपेट से उबर रहे हैं, उन्हें इस अंतर को भरना होगा और संभवतः अपने  पेट को काटकर अपने बच्चों को अधिक उपलब्ध कराना होगा। सबसे पहले माताएं ही अपने बच्चों की खाद्य असुरक्षा के प्रभाव को कम करेंगी। जैसे-जैसे माताओं की कैलोरी और पोषण की मात्रा कम होती जाएगी, एनीमिया और अन्य कमियों की घटनाओं में वृद्धि होती जाएगी। ये कमियां उनके होने वाले बच्चों में भी चली जाएंगी और यह चक्र दोहराता जाएगा, जिससे देश खराब स्वास्थ्य और कुपोषण में फंस जाएगा।

यह लेख पहली बार आईजीसी ब्लॉग पर प्रकाशित हुआ था।

टिप्पणियाँ:

  1. बच्चों में कुपोषण के कारण लम्बाई के अनुपात में कम वज़न कमज़ोर या वेस्टेड होना, उम्र के अनुसार कम कद अविकसित या स्टंटेड होना और उम्र के अनुसार कम वज़न हो सकता है।
  2. ज़ेड स्कोर एंथ्रोपोमेट्रिक मूल्यों जैसे कि ऊंचाई या वज़न को संदर्भ आबादी के औसत 'मीडियन' मूल्य से नीचे या ऊपर के कई मानक विचलन के रूप में व्यक्त करता है। (मानक विचलन एक ऐसा माप है जिसका उपयोग उस सेट के औसत से मूल्यों के एक सेट की भिन्नता या फैलाव की मात्रा निर्धारित करने के लिए किया जाता है) ।