
मातृत्व पर पोषण का बोझ : क्या बच्चों को दिया जाने वाला मध्याह्न भोजन उनकी माताओं के स्वास्थ्य परिणामों में भी सुधार ला सकता है?
मध्याह्न भोजन बच्चों को पोषण सुरक्षा जाल प्रदान करता है और उनके अधिगम परिणामों तथा स्कूलों में उनकी उपस्थिति में सुधार लाता है। निकिता शर्मा तर्क देती हैं कि मध्याह्न भोजन प्राप्त करने वाले बच्चों की माताओं को भी इसके ‘स्पिलओवर’ लाभ मिल सकते हैं। वह शोध के निष्कर्षों पर प्रकाश डालती हैं जो यह दर्शाते हैं कि मध्याह्न भोजन बच्चों में कुपोषण को दूर करने के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करता है कि पोषण में कमी के दौरान बच्चों को खिलाने के लिए माताओं को अपना आहार त्यागने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
माँ और उसके बच्चे के स्वास्थ्य का आपस में गहरा संबंध होता है। बच्चे अपनी पोषण संबंधी जरूरतों के लिए अपनी माताओं पर सबसे अधिक निर्भर होते हैं। नवजात शिशुओं के रूप में और देखभाल किए जाने वाले बच्चों, दोनो के रूप में। भारत में, माँ के कद या लम्बाई और उसकी शैक्षिक उपलब्धि का उसके बच्चों के वृद्धिरोध या स्टंटिंग स्तर के साथ मजबूत आपसी संबंध है (किम एवं अन्य 2017)। फिर भी, भारतीय परिवारों के पारिवारिक रहन-सहन में सामाजिक-सांस्कृतिक अपेक्षाएं, संस्कार, या मानदंड परिवार के आर्थिक झटके के प्रभाव को कम करने के लिए माताओं को अपने आहार को छोड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। यह स्थिति कोविड-19 महामारी और उससे उपजी खाद्य असुरक्षा के दौरान बहुत अधिक बढ़ गई थी (कपूर 2022)।
सबसे हालिया राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2019-2021) से पता चलता है कि 15 से 49 वर्ष आयु की महिलाओं में रक्ताल्पता यानी एनीमिया की घटनाएं पिछले सर्वेक्षण (2015-16) के 53.1% की तुलना में बढ़कर 57% हो गई हैं। जैसा कि अपेक्षित था, इसके चलते पांच साल तक के बच्चों में एनीमिया के प्रसार में वृद्धि हो गई है जो 58.6% से बढ़कर 67.1% हो गया है। इसी सर्वेक्षण के अनुसार, पांच वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे अविकसित या स्टंटेड हैं, 19.3% कमज़ोर या वेस्टेड हैं और 32.1% बच्चे कम वज़न के हैं1। मई 2022 में, यूनिसेफ ने इस तथ्य से सचेत किया था कि भारत में विश्व में सबसे अधिक कुपोषित बच्चे हैं और देश में पांच वर्ष से कम आयु के 5,772,472 बच्चे गंभीर रूप से कमज़ोर हैं।
वर्ष 1995 में, कुछ चुनिंदा राज्यों में लागू करने के बाद, भारत में मध्याह्न भोजन योजना (अब प्रधानमंत्री-पोषण योजना के नए नाम से लागू) आधिकारिक तौर पर शुरू की गई थी। वर्ष 2001 तक, सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश ने सरकारी और सरकारी सहायता-प्राप्त स्कूलों के लिए यह अनिवार्य कर दिया था कि वे सभी बच्चों को कम से कम 450 कैलोरी (kcal) और 12 ग्राम प्रोटीन-युक्त पका हुआ भोजन मुफ्त में प्रदान करें। अनुमानित 11 करोड़ 80 लाख बच्चे इस कार्यक्रम के दायरे में आते हैं, जो दुनिया में सबसे बड़ा स्कूल पोषणाहार कार्यक्रम है। यह नीति मुख्य रूप से बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लिए तैयार की गई थी पर दशकों से किए गए शोध ने इसके कई ‘स्पिलओवर’ लाभों का पता लगाया है।
बच्चों के कुपोषण के एक नीतिगत समाधान के रूप में स्कूल का भोजन
किए गए शोध ने दर्शाया है कि कार्यक्रम प्रतिभागियों के दैनिक पोषणाहार में 49% की वृद्धि और बच्चों में प्रोटीन, कैलोरी और आयरन की कमी (अफरीदी 2010) में गिरावट आई है। मध्याह्न भोजन तैयार करने में ‘डबल-फोर्टिफाइड’ नमक का उपयोग करने से बच्चों में होने वाले एनीमिया में कमी आई (क्रामर एवं अन्य 2018)। बच्चों के प्रारंभिक वर्षों के कुपोषण के संदर्भ में भरपाई या ‘कैच-अप’ वृद्धि और क्षतिपूर्ति (सिंह एवं अन्य 2014) और विशेष रूप से लड़कियों की स्कूल उपस्थिति में वृद्धि और समय के साथ उनके गणित और पठन अधिगम के परिणामों में सुधार के प्रमाण मिलते हैं (अफरीदी 2009, चक्रवर्ती और जयरामन 2019)। नीतिगत दृष्टिकोण से, मध्याह्न भोजन न केवल बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा की सुरक्षा करके उन्हें सुरक्षा कवच प्रदान करता है, बल्कि वंचित पृष्ठभूमि की महिलाओं को रोजगार भी प्रदान करता है और सामुदायिक खान-पान के माध्यम से सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा देता है (सिंह एवं अन्य 2014)। ये लाभ न केवल वयस्क होने पर बच्चों के जीवन में, बल्कि व्यापक समुदाय में भी स्थायी परिवर्तन लाने में सहायक हो सकते हैं।
लाभों का विस्तार और माताओं को अपरोक्ष लाभ मिलना
हाल ही के एक अध्ययन ने मध्याह्न भोजन योजना के अंतर-पीढ़ीगत लाभों को दर्शाया है- जिन माताओं को मध्याह्न भोजन योजना के पोषण संबंधी सहायता का लाभ मिला, उन्होंने उम्र के हिसाब से अधिक ऊंचाई के ज़ेड-स्कोर2 वाले बच्चों को जन्म दिया (चक्रबर्ती और अन्य 2021)। उन्होंने पाया कि जिन राज्यों में वर्ष 2005 में मध्याह्न भोजन योजना का अधिक कवरेज था, उन राज्यों में वर्ष 2016 में अविकसित या स्टंटेड बच्चे (पांच वर्ष की आयु तक के) कम थे। निचली सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले परिवारों की ऐसी माताओं को सबसे अधिक ‘कैरीओवर’ लाभ मिलता देखा गया जिन्हें उनके बचपन में मध्यान्ह भोजन योजना का लाभ मिला था । इसके अतिरिक्त, शोधकर्ता मानते हैं कि वर्ष 2006 और 2016 के बीच भारत में औसत आयु के अनुरूप ऊंचाई, ज़ेड-स्कोर में 13-32% का लाभ मध्याह्न भोजन योजना के कारण मिला।
मध्याह्न भोजन के एक और लाभ का पता इसकी अनुपस्थिति से चलता है। जहाँ परिवारों में भोजन की कमी और वित्तीय बाधाओं की परिस्थितियां हैं और माताओं के पास अपने बच्चों (और अन्य आश्रित सदस्यों) की प्राथमिक देखभाल करने वालों के रूप में बहुत कम विकल्प होते हैं, वहां माताओं को पोषण में कमी को सहना पड़ता है। और कमी के समय में माताएँ अपने स्वास्थ्य की स्थिति या पोषण की परवाह किए बिना, सबसे पहले आहार छोड़ती हैं। इसलिए, बच्चों को भोजन उपलब्ध करवाकर, राज्य यह सुनिश्चित कर सकता है कि माताओं के लिए घर में अधिक भोजन बचा रहे। हालाँकि भारत के मध्याह्न भोजन के बारे में ऐसी जांच का कोई ज्ञात अध्ययन नहीं है, ऐसा अध्ययन महिलाओं, शिशुओं और बच्चों के लिए अमेरिकी विशेष पूरक पोषण कार्यक्रम (डब्ल्यूआईसी) के संदर्भ में किया गया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि बच्चे जब डब्ल्यूआईसी के लाभों के पात्र नहीं रह जाते हैं, तो उनके पोषणाहार में कोई परिवर्तन नहीं होता, बल्कि इस कमी की भरपाई उनकी माताओं द्वारा किया जाता है जो परिणामतः कम भोजन खाती हैं (बिटलर एवं अन्य 2022)। शोधकर्ताओं ने समरूपता के लिए अपने परिणाम की तुलना एक अन्य कार्यक्रम के मूल्यांकन के साथ की, जिसके तहत संयुक्त राज्य अमेरिका में बच्चों वाले पात्र परिवारों को किराने का सामान खरीदने के लिए 60 डॉलर का वाउचर दिया जाता था। उम्मीद के मुताबिक, इस प्रकार के वाउचर से वयस्क खाद्य असुरक्षा में 18.5% की कमी आई (बिटलर एवं अन्य 2022)। इस प्रकार से, इस तरह के खाद्य सहायता कार्यक्रमों के स्पिलओवर लाभ और दूसरे फायदे परिवार के अन्य सदस्यों को भी मिलते हैं और ये माताओं को पोषण संबंधी कमी से बचा सकते हैं।
मध्याह्न भोजन दिए जाने के पारिवारिक निहितार्थ
सरकारी स्कूलों में बच्चों का नामांकन बढ़ रहा है, फिर भी मध्याह्न भोजन के लिए आवश्यक बजट आवंटन में इसके अनुरूप वृद्धि नहीं की गई है। कई स्पिलओवर लाभों और स्कूलों में मध्याह्न भोजन के प्रावधान की आवश्यकता के बारे में भरपूर शोध प्रमाण उपलब्ध होने के बावजूद, सरकार ने मध्याह्न भोजन हेतु बजट को वित्तीय वर्ष 2022-23 के 128 अरब से कम करते हुए वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 116 अरब रुपये कर दिया। बढ़ती कीमतें इस आवंटन को और अपर्याप्त बना देंगी। इसके कारण निश्चित रूप से मध्याह्न भोजन प्रदान करने वाले स्कूलों द्वारा भोजन की मात्रा और गुणवत्ता में समझौता किए जाने की संभावना है और वह भी एक ऐसे समय में, जब देश किसी भी बच्चे को भूखा नहीं रख सकता और न ही उसे खराब या अपर्याप्त भोजन दिया जा सकता है।
जैसे-जैसे स्कूल इन चुनौतियों का सामना करेंगे, इसके परिणाम बच्चों के घरों में प्रतिध्वनित होंगे। माता-पिता जो अभी भी महामारी की चपेट से उबर रहे हैं, उन्हें इस अंतर को भरना होगा और संभवतः अपने पेट को काटकर अपने बच्चों को अधिक उपलब्ध कराना होगा। सबसे पहले माताएं ही अपने बच्चों की खाद्य असुरक्षा के प्रभाव को कम करेंगी। जैसे-जैसे माताओं की कैलोरी और पोषण की मात्रा कम होती जाएगी, एनीमिया और अन्य कमियों की घटनाओं में वृद्धि होती जाएगी। ये कमियां उनके होने वाले बच्चों में भी चली जाएंगी और यह चक्र दोहराता जाएगा, जिससे देश खराब स्वास्थ्य और कुपोषण में फंस जाएगा।
यह लेख पहली बार आईजीसी ब्लॉग पर प्रकाशित हुआ था।
टिप्पणियाँ:
- बच्चों में कुपोषण के कारण लम्बाई के अनुपात में कम वज़न कमज़ोर या वेस्टेड होना, उम्र के अनुसार कम कद अविकसित या स्टंटेड होना और उम्र के अनुसार कम वज़न हो सकता है।
- ज़ेड स्कोर एंथ्रोपोमेट्रिक मूल्यों जैसे कि ऊंचाई या वज़न को संदर्भ आबादी के औसत 'मीडियन' मूल्य से नीचे या ऊपर के कई मानक विचलन के रूप में व्यक्त करता है। (मानक विचलन एक ऐसा माप है जिसका उपयोग उस सेट के औसत से मूल्यों के एक सेट की भिन्नता या फैलाव की मात्रा निर्धारित करने के लिए किया जाता है) ।